नाले कहीं बुलबुल के सुनाई नहीं देते
आशिक़ भी शब-ए-ग़म में दुहाई नहीं देते
अब 'मीर' नहीं हैं तो गली सूनी पड़ी है
अत्तार के लौंडे भी दिखाई नहीं देते
Parveen Shakir
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दास्तान-ए-इश्क़ मैं ने जब कही ससुराल में
हाथ में पापड़ लिए बैठा था मैं
बैल क्या चीज़ है गधा क्या है
गधे के साथ इक लीडर का फोटो
पहुँचा सियाह-फ़ाम इक आला-मक़ाम पर
क़ातिल तो क़त्ल कर के कभी का निकल गया
है विटामिन की कमी आशिक़ में तेरे इस क़दर
ऐ शैख़ कंघा करना नहीं ज़ेब देता यूँ
ये कहते हैं सभी इस दौर में हर काम मुमकिन है
कहानी इश्क़-ओ-मोहब्बत की ख़त्म पर आई
ज़बान-ए-मादरी पूछी जो इक लड़के से कॉलेज में