मौत से मिलने गले देख तो आशिक़ तेरे
बन-सँवर कर हुए तय्यार तिरे कूचे में
देख कर मौत का मंज़र ये अजब हम 'आसिम'
बन गए सूरत-ए-दीवार तिरे कूचे में
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है विटामिन की कमी आशिक़ में तेरे इस क़दर
हकला गया जो शादी में दूल्हा तो क्या हुआ
आशिक़ों की तो है भर-मार तिरे कूचे में
एक लीडर ने ये कहा मुझ से
मर जाए मौलवी तो फ़क़त होगी फ़ातिहा
क़ातिल तो क़त्ल कर के कभी का निकल गया
चाँद पर पहुँचा कोई झाँका कोई मिर्रीख़ में
हाथ में पापड़ लिए बैठा था मैं
अब कहाँ है वो नश्तरों की बहार
दिल पे अपने चोट खा कर रो दिए
जो आप पर फ़िदा हैं वो मेरे रक़ीब हैं