मैं ने कहा गधे से मियाँ कुछ पढ़ो लिखो
बोला जनाब हो गई बे-इज़्ज़ती तो फिर
बे-इज़्ज़ती भी ठीक है लेकिन जनाब-ए-मन
पढ़ लिख के बन गया मैं अगर आदमी तो फिर
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
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Jaun Eliya
Habib Jalib
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वो हाल है हर एक बशर काँप रहा है
दिल पे अपने चोट खा कर रो दिए
जब हटाई उस ने चेहरे से नक़ाब
सिलसिले ऊँचे ख़यालात से जोड़े हम ने
कहानी इश्क़-ओ-मोहब्बत की ख़त्म पर आई
जो आप पर फ़िदा हैं वो मेरे रक़ीब हैं
दिया नींद ने ऐसा आँखों को धोका
अगर मिल गई हूर जन्नत में मुझ को
गधे के साथ इक लीडर का फोटो
ये मंज़र देख कर बीवी ने काटा अपने शौहर को
ज़बान-ए-मादरी पूछी जो इक लड़के से कॉलेज में
किसी से दिल लगाने में बड़ी तकलीफ़ होती है