कहानी इश्क़-ओ-मोहब्बत की ख़त्म पर आई
हुआ ख़याल बिछड़ने की रहगुज़र आई
सरक गया जो दुपट्टा सफ़ेद बालों से
''तिरे जमाल की दोशीज़गी नज़र आई''
Faiz Ahmad Faiz
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अब कहाँ है वो नश्तरों की बहार
आतंक का माहौल है छाया हुआ दिल पर
इश्क़ में सब्र आ गया 'आसिम'
मैं ने कहा गधे से मियाँ कुछ पढ़ो लिखो
जब हटाई उस ने चेहरे से नक़ाब
चाँद पर पहुँचा कोई झाँका कोई मिर्रीख़ में
ये मंज़र देख कर बीवी ने काटा अपने शौहर को
एक लीडर ने ये कहा मुझ से
सिलसिले ऊँचे ख़यालात से जोड़े हम ने
ज़बान-ए-मादरी पूछी जो इक लड़के से कॉलेज में
मौत से मिलने गले देख तो आशिक़ तेरे