ऐ शैख़ कंघा करना नहीं ज़ेब देता यूँ
दाढ़ी में तू कभी कोई तिनका भी छोड़ दे
हर वक़्त अपनी बीवी को रख साथ तू मगर
''लेकिन कभी कभी उसे तन्हा भी छोड़ दे''
Jaun Eliya
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चाँद पर पहुँचा कोई झाँका कोई मिर्रीख़ में
दास्तान-ए-इश्क़ मैं ने जब कही ससुराल में
दिया नींद ने ऐसा आँखों को धोका
एक लीडर ने ये कहा मुझ से
रेट इतने बढ़े हैं जूतों के
है विटामिन की कमी आशिक़ में तेरे इस क़दर
आशिक़ों की तो है भर-मार तिरे कूचे में
कहानी इश्क़-ओ-मोहब्बत की ख़त्म पर आई
अगर मिल गई हूर जन्नत में मुझ को
बैल क्या चीज़ है गधा क्या है
ज़बान-ए-मादरी पूछी जो इक लड़के से कॉलेज में
क़ातिल तो क़त्ल कर के कभी का निकल गया