अगर मिल गई हूर जन्नत में मुझ को
तो नख़रा भी उस का उठाना पड़ेगा
यहाँ मौत देती है इंसाँ को छुट्टी
वहाँ जाने कब तक निभाना पड़ेगा
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जो आप पर फ़िदा हैं वो मेरे रक़ीब हैं
ये मंज़र देख कर बीवी ने काटा अपने शौहर को
वो हाल है हर एक बशर काँप रहा है
चाँद पर पहुँचा कोई झाँका कोई मिर्रीख़ में
हकला गया जो शादी में दूल्हा तो क्या हुआ
नाले कहीं बुलबुल के सुनाई नहीं देते
बैल क्या चीज़ है गधा क्या है
दिया नींद ने ऐसा आँखों को धोका
ज़बान-ए-मादरी पूछी जो इक लड़के से कॉलेज में
किसी से दिल लगाने में बड़ी तकलीफ़ होती है
अब कहाँ है वो नश्तरों की बहार