नसरी नज़्म
नस्र अब्बा नज़्म अमाँ दोनों को इंकार है
ये जो नसरी नज़्म है ये किस की पैदा-वार है
सिर्फ़ लफ्फ़ाज़ी पे मब्नी है ये तजरीदी कलाम
जिस में अन्क़ा हैं मआनी लफ़्ज़ पर्दा-दार है
नस्र है गर नस्र तो वो नज़्म हो सकती नहीं
नज़्म जो हो नस्र की मानिंद वो बे-कार है
क़ाफ़िए की कोई पाबंदी न है क़ैद-ए-रदीफ़
बे-दर-ओ-दीवार का ये घर भी क्या पुरकार है
बहर से आज़ाद क़ैद-ए-वज़न से है बे-नियाज़
वाह क्या मदर पिदर आज़ाद ये दिलदार है
मर्तबे में 'मीर' ओ 'मोमिन' से है हर कोई बुलंद
इन में हर बे-बहर ग़ालिब से बड़ा फ़नकार है
जिस के चमचे जितने ज़्यादा हों वो उतना ही अज़ीम
आज कल मिसरा उठाना एक कारोबार है
दाद सिर्फ़ अपनों को देते हैं गिरोह-अंदर-गिरोह
उन के टोले से जो बाहर हो गया मुरदार है
बन गया उस्ताद-ओ-अल्लामा यहाँ हर बे-शुऊर
कोर-चश्म अहल-ए-नज़र होने का दावेदार है
शाइरी जुज़-शाइरी है है ज़रा मेहनत-तलब
और मेहनत ही वो शय है जिस से उन को आर है
पाप-म्यूज़िक के लिए मौज़ूँ है नसरी शाइरी
हर रिवायत से बग़ावत की ये दावेदार है
तब्अ-ए-मौज़ूँ गर न बख़्शी हो ख़ुदा ने आप को
शाइरी क्यूँ कीजे आख़िर क्या ख़ुदा की मार है
दाद देना ऐसी नज़्मों को बड़ी बे-दाद है
जो न समझा और कहे समझा बड़ा मक्कार है
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