सर झुकाए सर-ए-महशर जो गुनहगार आए
सर झुकाए सर-ए-महशर जो गुनहगार आए
उस के अंदाज़ पे रहमत को न क्यूँ प्यार आए
जाम-ओ-पैमाना से मय-ख़ाना से क्या काम उसे
हो के साक़ी की निगाहों से जो सरशार आए
दी सदा दिल ने ज़रा और भी दुश्वार हो राह
रास्ते जब भी मिरे सामने हमवार आए
ज़िंदगी क्यूँ न मिरे मौत पे उन की जो लोग
मुस्कुराते हुए ज़िंदाँ से सर-ए-दार आए
मैं ने तज़ईन-ए-चमन के लिए ख़ूँ अपना दिया
पाए फूल औरों ने हिस्से में मिरे ख़ार आए
बाँकपन अपनी तबीअ'त का कभी कम न हुआ
सामने अपने कोई लाख तरह-दार आए
ऐसे जाँ-बाज़ों की बन जाए न क्यूँ मौत हयात
मुस्कुराते हुए 'आसी' जो सर-ए-दार आए
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