क़फ़स-नसीबों का उफ़ हाल-ए-ज़ार क्या होगा
क़फ़स-नसीबों का उफ़ हाल-ए-ज़ार क्या होगा
फिर आ रही है चमन में बहार क्या होगा
दिल-ओ-जिगर पे लिए होंगे ज़ख़्म कितनों ने
कोई हमारी तरह दिल-ए-फ़िगार क्या होगा
इसी ख़याल से मैं अर्ज़-ए-शौक़ कर न सका
हया से रंग-ए-रुख़-ए-ताब-दार क्या होगा
बहार दे न सकी एक फूल को भी निखार
ख़िज़ाँ के साथ है रंग-ए-बहार क्या होगा
फ़सुर्दा लाला-ओ-गुल हैं रविश रविश है उदास
चमन में ऐसे में जश्न-ए-बहार क्या होगा
ख़दंग-ए-नाज़ ने कुछ इस तरह किया ज़ख़्मी
जो दिल के ज़ख़्म हैं उन का शुमार क्या होगा
कभी की टूट गई आस रात भीग गई
किसी के आने का अब इंतिज़ार क्या होगा
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