लाला-ओ-गुल पे ख़िज़ाँ आज भी जब छाई है
लाला-ओ-गुल पे ख़िज़ाँ आज भी जब छाई है
कौन कहता है गुलिस्ताँ में बहार आई है
सू-ए-मय-ख़ाना चलें रिंद न क्यूँ जाम-ब-दस्त
सर-ए-मय-ख़ाना जो घनघोर घटा छाई है
फूल मसरूर चमन में हैं अनादिल शादाँ
किस के आने की ख़बर बाद-ए-सबा लाई है
रात ने गेसुओं से उन के सियाही ली है
उन के रुख़्सार से सूरज ने ज़िया पाई है
(1439) Peoples Rate This