ख़्वाब में आओ मिरे रंगीन ख़्वाबों की तरह
ख़्वाब में आओ मिरे रंगीन ख़्वाबों की तरह
पढ़ सकूँ तुम को मैं रूमानी किताबों की तरह
दीजिए तश्बीह क्या उन को मह-ओ-ख़ुर्शीद से
एक चेहरा उन का है सौ आफ़्ताबों की तरह
चाहे गर इंसाँ तो बन सकती है ला-फ़ानी हयात
ज़िंदगी इंसान की गो है हबाबों की तरह
जैसे मफ़हूम-ओ-मआ'नी से हों आरी सारे ही
पढ़ता हूँ इक एक चेहरे को किताबों की तरह
तिश्नगी सब की बुझाएँ बहर-ए-बे-पायाँ बनें
बन के दुनिया में रहें हम क्यूँ सराबों की तरह
(1530) Peoples Rate This