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दी गई तरतीब-ए-बज़्म-ए-कुन-फ़काँ मेरे लिए - आसी रामनगरी कविता - Darsaal

दी गई तरतीब-ए-बज़्म-ए-कुन-फ़काँ मेरे लिए

दी गई तरतीब-ए-बज़्म-ए-कुन-फ़काँ मेरे लिए

ये ज़मीं मेरे लिए है आसमाँ मेरे लिए

दीदनी है ख़ुद ही अपने दिल के ज़ख़्मों की बहार

हेच है रंगीनी-ए-हर-गुलसिताँ मेरे लिए

ज़ौक़-ए-सज्दा चाहिए कैसा हरम कैसी कुनिश्त

आस्तान-ए-दोस्त है हर आस्ताँ मेरे लिए

जादा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा में मर के ज़िंदा हो गया

मौत है मेरी हयात-ए-जाविदाँ मेरे लिए

अज़्म-ए-कामिल को मिरे हर-गाम पर मंज़िल मिली

बन गईं दुश्वारियाँ आसानियाँ मेरे लिए

हो मुबारक हज़रत-ए-ज़ाहिद को फ़िरदौस-ए-जिनाँ

है दयार-ए-दोस्त ख़ुल्द-ए-जावेदाँ मेरे लिए

हम-नवाओं को मुबारक हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ

मुज़्तरिब ज़िंदाँ में होंगी बेड़ियाँ मेरे लिए

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