धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो

धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो

किसी दामन की हवा ज़ुल्फ़ का साया माँगो

उस से क्या कम है किसी के रुख़-ए-ज़ेबा की ज़िया

माह-ओ-ख़ुरशीद से क्यूँ उन का उजाला माँगो

जिस के बा'द और न रह जाए तमन्ना कोई

माँगना हो जो ख़ुदा से वो तमन्ना माँगो

ख़ूब है दर्द की लज़्ज़त ये बड़ी दौलत है

ज़ख़्म-ए-दिल के लिए मरहम न मुदावा माँगो

जिस से छाई हुई हालात की ज़ुल्मत छट जाए

तुम तो ख़ुर्शीद हो ख़ुद से वो उजाला माँगो

गर शब-ए-ग़म को सहर चाहो बनाना 'आसी'

किसी सलमा से ज़िया-ए-रुख़-ए-ज़ेबा माँगो

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