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वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद - आसी ग़ाज़ीपुरी कविता - Darsaal

वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद

वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद

कि तेरे नाम की रट है ख़ुदा के नाम के बाद

वहाँ भी वादा-ए-दीदार इस तरह टाला

कि ख़ास लोग तलब होंगे बार-ए-आम के बाद

गुनाहगार की सुन लो तो साफ़ साफ़ ये है

कि लुत्फ़-ए-रहम-ओ-करम क्या फिर इंतिक़ाम के बाद

तलब तमाम हो मतलूब की अगर हद हो

लगा हुआ है यहाँ कूच हर मक़ाम के बाद

वो ख़त वो चेहरा वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह तो देखो

कि शाम सुब्ह के बाद आए सुब्ह शाम के बाद

पयाम-बर को रवाना किया तो रश्क आया

न हम-कलाम हो उस से मिरे कलाम के बाद

अभी तो देखते हैं ज़र्फ़ बादा-ख़्वारों का

सुबू ओ ख़ुम की भी ठहरेगी दौर-ए-जाम के बाद

इलाही 'आसी'-ए-बेताब किस से छूटा है

कि ख़त में रोज़-ए-क़यामत लिखा है नाम के बाद

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