उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
मैं उस के वास्ते किस वक़्त बे-क़रार न था
कोई जहान में क्या और तरह-दार न था
तिरी तरह मुझे दिल पर तो इख़्तियार न था
ख़िराम जल्वे के नक़्श-ए-क़दम थे लाला-ओ-गुल
कुछ और उस के सिवा मौसम-ए-बहार न था
वो कौन नाला-ए-दिल था क़फ़स में ऐ सय्याद
कि मिस्ल-ए-तीर-ए-नज़र आसमाँ शिकार न था
ग़लत है हुक्म-ए-जहन्नम किसे हुआ होगा
कि मुझ से बढ़ के तो कोई गुनाहगार न था
वफ़ूर-ए-बे-ख़ुदी-ए-बज़्म-ए-मय न पूछो रात
कोई ब-जुज़ निगह-ए-यार होशियार न था
लहद को खोल के देखो तो अब कफ़न भी नहीं
कोई लिबास न था जो कि मुस्तआ'र न था
तो महव-ए-गुल-बन-ओ-गुलज़ार हो गया 'आसी'
तिरी नज़र में जमाल-ए-ख़याल-ए-यार न था
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