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सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है - आसी ग़ाज़ीपुरी कविता - Darsaal

सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है

सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है

ऐ मेरे रश्क-ए-गुल कहाँ तू है

बर्छी थी वो निगाह देखो तो

लहू आँखों में है कि आँसू है

एक दम में हज़ार दफ़्तर तय

चश्म-ए-हसरत ग़ज़ब सुख़न-गो है

तू ही तू और बाल बाल अपना

फ़ाख़्ता और शोर-ए-कू-कू है

तुझ को देखे फिर आप में रह जाए

दिल पर इतना किसी को क़ाबू है

जोश-ए-अश्क ओ तसव्वुर-ए-क़द-ए-यार

सर्व गोया खड़ा लब-ए-जू है

हद न पूछो हमारी वहशत की

दिल में हर दाग़ चश्म-ए-आहू है

जिस ने मोमिन बना लिया हम को

वो तुम्हारा ही मुसहफ़-ए-रू है

जिस के कुश्ते हैं ज़िंदा-ए-जावेद

वो तुम्हारी ही तेग़-ए-अबरू है

दिल जो बे-मुद्दआ हो क्या कहना

यही वीराना आलम-ए-हू है

पुल भी है फ़ख़्र-ए-जौनपुर 'आसी'

ख़्वाब-गाह-ए-जनाब-ए-शेख़ू है

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