ख़ाक सहरा में उड़ाती है ये दीवानी हवा

ख़ाक सहरा में उड़ाती है ये दीवानी हवा

और बहारों में करेगी चाक-दामानी हवा

पेड़ उखड़े घर गिरे आँधी चली छप्पर उड़े

चल पड़ी जिस वक़्त आबादी में दीवानी हवा

गर्मियों में मुज़्तरिब थे लोग पानी के लिए

बादलों को कर गई बरसात में पानी हवा

यूँ हुआ महसूस पत्तों के खड़कने से मुझे

चुपके चुपके करती है औराक़-गर्दानी हवा

रौशनी ही रौशनी होती जहाँ में हर तरफ़

गर चराग़ों की किया करती निगहबानी हवा

हाए फिर जज़्बात 'आसी' को हवा देने लगे

दिल के दरिया में कहीं लाए न तुग़्यानी हवा

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KHak Sahra Mein UDati Hai Ye Diwani Hawa In Hindi By Famous Poet Aasi Faiqi. KHak Sahra Mein UDati Hai Ye Diwani Hawa is written by Aasi Faiqi. Complete Poem KHak Sahra Mein UDati Hai Ye Diwani Hawa in Hindi by Aasi Faiqi. Download free KHak Sahra Mein UDati Hai Ye Diwani Hawa Poem for Youth in PDF. KHak Sahra Mein UDati Hai Ye Diwani Hawa is a Poem on Inspiration for young students. Share KHak Sahra Mein UDati Hai Ye Diwani Hawa with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.