सहीह कह रहे हो
सहीह कह रहे हो
शिकायत बजा है तुम्हारी
घने गर्द चेहरे तुम्हारे नहीं हैं
ख़िज़ाँ-ज़ादे शहरों का रुख़ कर रहे हैं
गुलाबी हरे नीले पीले
सभी रंग मौसम उड़ा ले गया है
कोई धानी चुनरी
हवा से नहीं खेलती है
कहानी सुनाओ किसी वक़्त भी
कि दिन रात की क़ैद बाक़ी नहीं है
सुना है
मुसाफ़िर कोई रास्ता अब नहीं भूलता
सही कह रहे हो
कि ये मसअला भी तुम्हारा नहीं है
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