अक़्द-नामे
आज उन्हों ने ऐलान कर ही दिया
देखो!
हम ने तुम्हारी सब की सब क़ुव्वतों का फ़ैसला किया था
क़ील-ओ-क़ाल की गुंजाइश बाक़ी नहीं है
तुम्हारे इक़रार-नामे हमारे पास महफ़ूज़ हैं
तुम से पहले वालों की ख़ता यही थी
कि उन्हें,
अपनी नाफ़ के नीचे सरसराहट का एहसास
कुछ ज़ियादा ही हो चला था
उन्हें शहर-बदर कर दिया गया
उन के पछतावे और गिड़गिड़ाहटें
आज भी हमारे कानों में महफ़ूज़ हैं
तुम्हें इतनी छूट दी ही क्यूँ जाए
कि तुम
कल हमारे मुक़ाबले पर उतर आओ
हम तुम्हें होशियार किए देते हैं
दीवारें फलांगने वाले
इताब से बच नहीं सकते
अक़्द-नामों पर तुम्हारे दस्तख़त
तुम्हारी ना-मुरादी का खुला ए'तिराफ़ हैं
इस के बग़ैर
हमारी हरम-सरा में
दाख़िल होने के इजाज़त-नामे
तुम्हें मिल भी कैसे सकते थे
इस से पहले कि हमारे नजीबुत-तरफ़ैन शजरे मश्कूक हो जाएँ
और हमारे हसब-नसब पर आँच आ जाए
हम!
तुम से पहले गुलू-ख़लासी का रास्ता ढूँड निकालेंगे!!
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