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सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे - आशुफ़्ता चंगेज़ी कविता - Darsaal

सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे

सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे

बिछड़ के तुझ से अजब रोग लग गया है मुझे

जो मुड़ के देखा तो हो जाएगा बदन पत्थर

कहानियों में सुना था सो भोगना है मुझे

मैं तुझ को भूल न पाया यही ग़नीमत है

यहाँ तो इस का भी इम्कान लग रहा है मुझे

मैं सर्द जंग की आदत न डाल पाऊँगा

कोई महाज़ पे वापस बुला रहा है मुझे

सड़क पे चलते हुए आँखें बंद रखता हूँ

तिरे जमाल का ऐसा मज़ा पड़ा है मुझे

अभी तलक तो कोई वापसी की राह न थी

कल एक राहगुज़र का पता लगा है मुझे

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