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किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं - आशुफ़्ता चंगेज़ी कविता - Darsaal

किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं

किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं

जब से चले हैं घर से मुसलसल सफ़र में हैं

सारे तमाशे ख़त्म हुए लोग जा चुके

इक हम ही रह गए जो फ़रेब-ए-सहर में हैं

ऐसी तो कोई ख़ास ख़ता भी नहीं हुई

हाँ ये समझ लिया था कि हम अपने घर में हैं

अब के बहार देखिए क्या नक़्श छोड़ जाए

आसार बादलों के न पत्ते शजर में हैं

तुझ से बिछड़ना कोई नया हादसा नहीं

ऐसे हज़ारों क़िस्से हमारी ख़बर में हैं

'आशुफ़्ता' सब गुमान धरा रह गया यहाँ

कहते न थे कि ख़ामियाँ तेरे हुनर में हैं

(1983) Peoples Rate This

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