अजब रंग आँखों में आने लगे
अजब रंग आँखों में आने लगे
हमें रास्ते फिर बुलाने लगे
इक अफ़्वाह गर्दिश में है इन दिनों
कि दरिया किनारों को खाने लगे
ये क्या यक-ब-यक हो गया क़िस्सा-गो
हमें आप-बीती सुनाने लगे
शगुन देखें अब के निकलता है क्या
वो फिर ख़्वाब में बड़बड़ाने लगे
हर इक शख़्स रोने लगा फूट के
कि 'आशुफ़्ता'-जी भी ठिकाने लगे
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