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वो कुछ गहरी सोच में ऐसे डूब गया है - आनिस मुईन कविता - Darsaal

वो कुछ गहरी सोच में ऐसे डूब गया है

वो कुछ गहरी सोच में ऐसे डूब गया है

बैठे बैठे नदी किनारे डूब गया है

आज की रात न जाने कितनी लम्बी होगी

आज का सूरज शाम से पहले डूब गया है

वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था

पानी पानी कहते कहते डूब गया है

मेरे अपने अंदर एक भँवर था जिस में

मेरा सब कुछ साथ ही मेरे डूब गया है

शोर तो यूँ उट्ठा था जैसे इक तूफ़ाँ हो

सन्नाटे में जाने कैसे डूब गया है

आख़िरी ख़्वाहिश पूरी कर के जीना कैसा

'आनस' भी साहिल तक आ के डूब गया है

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