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जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते - आनिस मुईन कविता - Darsaal

जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते

जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते

बच्चे लेकिन सोए हुए थे किस से कहानी कहते

सच कहने का हौसला तुम ने छीन लिया है वर्ना

शहर में फैली वीरानी को सब वीरानी कहते

वक़्त गुज़रता जाता और ये ज़ख़्म हरे रहते तो

बड़ी हिफ़ाज़त से रक्खी है तेरी निशानी कहते

वो तो शायद दोनों का दुख इक जैसा था वर्ना

हम भी पत्थर मारते तुझ को और दीवानी कहते

तब्दीली सच्चाई है इस को मानते लेकिन कैसे

आईने को देख के इक तस्वीर पुरानी कहते

तेरा लहजा अपनाया अब दिल में हसरत सी है

अपनी कोई बात कभी तो अपनी ज़बानी कहते

चुप रह कर इज़हार किया है कह सकते तो 'आनस'

एक अलाहिदा तर्ज़-ए-सुख़न का तुझ को बानी कहते

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