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जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा - आलोक श्रीवास्तव कविता - Darsaal

जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा

जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा

आसमाँ पर कहीं मेरा भी सितारा होगा

दुश्मनी नींद से कर के हूँ पशेमानी में

किस तरह अब मिरे ख़्वाबों का गुज़ारा होगा

मुंतज़िर जिस के लिए हम हैं कई सदियों से

जाने किस दौर में वो शख़्स हमारा होगा

मैं ने पलकों को चमकते हुए देखा है अभी

आज आँखों में कोई ख़्वाब तुम्हारा होगा

दिल परस्तार नहीं अपना पुजारी भी नहीं

देवता कोई भला कैसे हमारा होगा

तेज़-रौ अपने क़दम हो गए पत्थर कैसे

कौन है किस ने मुझे ऐसे पुकारा होगा

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