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हर बार हुआ है जो वही तो नहीं होगा - आलोक श्रीवास्तव कविता - Darsaal

हर बार हुआ है जो वही तो नहीं होगा

हर बार हुआ है जो वही तो नहीं होगा

डर जिस का सताता है अभी तो नहीं होगा

दुनिया को चलो परखें नए दोस्त बनाएँ

हर शख़्स ज़माने में वही तो नहीं होगा

वो शख़्स बड़ा है तो ग़लत हो नहीं सकता

दुनिया को भरोसा ये अभी तो नहीं होगा

है उस का इशारा भी समझने की ज़रूरत

होगा तो कभी होगा अभी तो नहीं होगा

दो-चार गड़े मुर्दे उखाड़ेंगे किसी रोज़

हर बार नया झगड़ा कभी तो नहीं होगा

कुछ और भी हो सकता है तक़रीर का मतलब

जो आप ने समझा है वही तो नहीं होगा

हर बार ज़माने का सितम होगा मुझी पर

हाँ मैं ही बदल जाऊँ कभी तो नहीं होगा

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