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हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे - आल-ए-अहमद सूरूर कविता - Darsaal

हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे

हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे

ने किसी की जेब में थे न किसी झोली में थे

बंदा-परवर सिर्फ़ नज़्ज़ारे पे क़दग़न किस लिए

फूल फल जो बाग़ के थे आप की झोली में थे

आप के नारों में ललकारों में कैसे आएँगे

ज़मज़मे जो अन-कही इक प्यार की बोली में थे

फिर किसी कूफ़े में तन्हा है कोई इब्न-ए-अक़ील

उस के साथी सब के सब सरकार की टोली में थे

अब धनक के रंग भी उन को भले लगते नहीं

मस्त सारे शहर वाले ख़ून की होली में थे

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