वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
देर तक उस की बलाग़त को पढ़ा करते हैं
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देर तक उस की बलाग़त को पढ़ा करते हैं
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