वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
देर तक उस की बलाग़त को पढ़ा करते हैं
(1790) Peoples Rate This
वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
देर तक उस की बलाग़त को पढ़ा करते हैं
(1790) Peoples Rate This