यूँ जो उफ़्ताद पड़े हम पे वो सह जाते हैं
यूँ जो उफ़्ताद पड़े हम पे वो सह जाते हैं
हाँ कभी बात जो कहने की है कह जाते हैं
न चटानों की सलाबत है न दरिया का जलाल
लोग तिनके हैं जो हर मौज में बह जाते हैं
ये नई नस्ल है इस वास्ते ख़ाली ख़ाली
दर्द जितने हैं वो बातों ही में बह जाते हैं
आमद आमद किसी ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब की है
पेशवाई के लिए अंजुम ओ मह जाते हैं
ज़िंदगी बन गई दीवानों की इक दौड़ 'सुरूर'
हम से कितने हैं जो इस दौड़ में रह जाते हैं
(1543) Peoples Rate This