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वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे - आल-ए-अहमद सूरूर कविता - Darsaal

वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे

वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे

चराग़ दिल के अँधेरे में जल गए कैसे

बना दिया था ज़माने ने बर्फ़ के मानिंद

हम एक शोख़ किरन से पिघल गए कैसे

उमीद जिन से थी वज़-ए-जुनूँ निभाने की

वो लोग वक़्त के साँचे में ढल गए कैसे

सितारे जज़्ब हुए गर्द-ए-राह में क्या क्या

ख़याल-ओ-ख़्वाब के आईं बदल गए कैसे

ख़िज़ाँ से जिन को बचा लाए थे जतन कर के

वो नख़्ल अब के बहारों में जल गए कैसे

न जाने क्यूँ जिन्हें समझे थे हम फ़रिश्ते हैं

क़रीब आए तो चेहरे बदल गए कैसे

हर एक साया-ए-दीवार की लपेट में है

'सुरूर' आप ही बच कर निकल गए कैसे

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