आल-ए-अहमद सूरूर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आल-ए-अहमद सूरूर (page 1)
नाम | आल-ए-अहमद सूरूर |
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अंग्रेज़ी नाम | Aal-e-Ahmad Suroor |
जन्म की तारीख | 1911 |
मौत की तिथि | 2002 |
ये क्या ग़ज़ब है जो कल तक सितम-रसीदा थे
वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
तुम्हारी मस्लहत अच्छी कि अपना ये जुनूँ बेहतर
तमाम उम्र कटी उस की जुस्तुजू करते
साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन
मय-कशी के भी कुछ आदाब बरतना सीखो
लोग माँगे के उजाले से हैं ऐसे मरऊब
कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा
जहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनाम
हुस्न काफ़िर था अदा क़ातिल थी बातें सेहर थीं
हम तो कहते थे ज़माना ही नहीं जौहर-शनास
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
हस्ती के भयानक नज़्ज़ारे साथ अपने चले हैं दुनिया से
बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
अब धनक के रंग भी उन को भले लगते नहीं
आती है धार उन के करम से शुऊर में
आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
टीपू की आवाज़
ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी
यूँ जो उफ़्ताद पड़े हम पे वो सह जाते हैं
ये दौर मुझ से ख़िरद का वक़ार माँगे है
वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे
तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं
सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर
शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था