Sharab Poetry of Aagha Akbarabadi
नाम | आग़ा अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Aagha Akbarabadi |
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात
रिंद-मशरब हैं किसी से हमें कुछ काम नहीं
मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाह
कुछ ऐसी पिला दे मुझे ऐ पीर-ए-मुग़ाँ आज
सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता
शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना
नमाज़ कैसी कहाँ का रोज़ा अभी मैं शग़्ल-ए-शराब में हूँ
नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ
मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब
मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का
ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा
जा लड़ी यार से हमारी आँख
हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और