Islamic Poetry of Aagha Akbarabadi
नाम | आग़ा अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Aagha Akbarabadi |
ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे
तवाफ़-ए-काबा को क्या जाएँ हज नहीं वाजिब
ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाह
बुत नज़र आएँगे माशूक़ों की कसरत होगी
वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई
तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ
सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता
शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना
नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं
नमाज़ कैसी कहाँ का रोज़ा अभी मैं शग़्ल-ए-शराब में हूँ
मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का
ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा
दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और
बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम