वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
चल के भट्टी पे पिएँ जुर'आ-ए-इरफ़ाँ कैसा
Rahat Indori
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1584) Peoples Rate This
नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ
मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाह
दर-ब-दर फिरने ने मेरी क़द्र खोई ऐ फ़लक
मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे
हाथ दोनों मिरी गर्दन में हमाइल कीजे
हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
किसी को कोसते क्यूँ हो दुआ अपने लिए माँगो
मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त
शिकायत मुझ को दोनों से है नासेह हो कि वाइज़ हो
शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात