तवाफ़-ए-काबा को क्या जाएँ हज नहीं वाजिब
कलाल-ख़ाने के कुछ दीन-दार हम भी हैं
Habib Jalib
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Parveen Shakir
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Allama Iqbal
Wasi Shah
Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
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हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
हमें तो उन की मोहब्बत है कोई कुछ समझे
पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा
रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से
जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है
हम न कहते थे कि सौदा ज़ुल्फ़ का अच्छा नहीं
सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया
हाथ दोनों मिरी गर्दन में हमाइल कीजे
जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में
इन परी-रूयों की ऐसी ही अगर कसरत रही
जा लड़ी यार से हमारी आँख