सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
बुतों का ज़िक्र ख़ुदा की किताब में देखा
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हमें तो उन की मोहब्बत है कोई कुछ समझे
ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा
बुत नज़र आएँगे माशूक़ों की कसरत होगी
दश्त-ए-वहशत-ख़ेज़ में उर्यां है 'आग़ा' आप ही
जा लड़ी यार से हमारी आँख
देखिए पार हो किस तरह से बेड़ा अपना
मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का
पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा
आँखों पे वो ज़ुल्फ़ आ रही है
चाहत ग़म्ज़े जता रही है
वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई
नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं