मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
दर-ए-मय-ख़ाना पे बिछता है मुसल्ला अपना
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नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं
देखो तो एक जा पे ठहरती नहीं नज़र
जा लड़ी यार से हमारी आँख
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
जुनूँ के हाथ से है इन दिनों गरेबाँ तंग
दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और
रिंद-मशरब हैं किसी से हमें कुछ काम नहीं
ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे
पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा
क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
मय-कशो देर है क्या दौर चले बिस्मिल्लाह