कुछ ऐसी पिला दे मुझे ऐ पीर-ए-मुग़ाँ आज
क़ैंची की तरह चलने लगी मेरी ज़बाँ आज
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ओ सितमगर तिरी तलवार का धब्बा छट जाए
मय-कशों में न कोई मुझ सा नमाज़ी होगा
वादा-ए-बादा-ए-अतहर का भरोसा कब तक
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
किसी सय्याद की पड़ जाए न चिड़िया पे नज़र
मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब
नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं
तवाफ़-ए-काबा को क्या जाएँ हज नहीं वाजिब
हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
दश्त-ए-वहशत-ख़ेज़ में उर्यां है 'आग़ा' आप ही
हाथ दोनों मिरी गर्दन में हमाइल कीजे
जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में