नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं

नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं

नतीजा-ए-चमन-ए-रोज़गार हम भी हैं

शरीक-ए-सोहबत-ए-अग़्यार-ओ-यार हम भी हैं

गुलों में गुल हैं तो ख़ारों में ख़ार हम भी हैं

मुक़ाबिल-ए-चमन-ए-लाला-ज़ार हम भी हैं

जिगर के दाग़ों से रश्क-ए-बहार हम भी हैं

करो हिजाब न हम से अलग अलग न फिरो

इधर भी आओ कि यारों के यार हम भी हैं

वो कहते हैं कि बिला-शक है दिल को दिल से राह

तुम्हारी तरह से अब बे-क़रार हम भी हैं

उधार भी हमें मिल जाती है मय-ए-गुल-रंग

कलाल-ख़ाने में ज़ी-ए'तिबार हम भी हैं

ख़िज़ाँ का दख़्ल नहीं है हमारे गुलशन में

बिसान-ए-सर्व हमेशा बहार हम भी हैं

ख़ुदा वो दिन तो दिखाए हमें समझ लेंगे

शब-ए-विसाल भी बाक़ी है यार हम भी हैं

बत-ए-शराब उड़ाएँगे मेंह बरसने दो

ख़ुदा के फ़ज़्ल के उम्मीद-वार हम भी हैं

शरीक-ए-हाल हैं हर दिल-जले की सोहबत में

जो शम्अ रोती है तो अश्क-बार हम भी हैं

हमें सताओ न इतना बुतो ख़ुदा से डरो

कि एक बंदा-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं

नसीब रंज हुआ जब ख़ुशी के दिन आए

ख़िज़ाँ-रसीदा-ए-फ़स्ल-ए-बहार हम भी हैं

वो दाम-ए-गेसू में दिल को फँसाते हैं 'आग़ा'

जहाँ में शाएर-ए-मज़मूँ-शिकार हम भी हैं

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