मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त
मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त
मेरी शिकायतों से भरा है तमाम ख़त
घबरा न इस क़दर दिल-ए-बेताब सब्र कर
आता है कोई रोज़ में अब सुब्ह-ओ-शाम ख़त
लिक्खा हुआ है ख़ास तुम्हारे ही हाथ का
पहचानता है ख़ूब तुम्हारा ग़ुलाम ख़त
तहरीर उन की सीना पे रख दीजियो मिरे
बदले जवाब-ए-नामा के आएगा काम ख़त
लिक्खा है अब न लिक्खेंगे हम कोई ख़त तुझे
ख़त आया मेरी मौत का लाया पयाम ख़त
ज़ाएअ' न जाएगी तिरी मेहनत किसी तरह
क़ासिद अजूरा देता हूँ चुटकी में थाम ख़त
आशिक़-नवाज़ियाँ हैं तबीअ'त में यार की
लिक्खा है हर महीने में भेजो मुदाम ख़त
तहरीर कर के सैकड़ों वा'दे मुकर गए
दिखलाऊँगा हुज़ूर को रोज़-ए-क़याम ख़त
ख़त लिख के आज डाक पे पहुँचेंगे यार को
पहुँचाएगा हमारा पयाम-ओ-सलाम ख़त
'आग़ा' निसार होजिए इनआ'म दीजिए
लाया है उन का क़ासिद-ए-सरसर-ख़िराम ख़त
(1971) Peoples Rate This